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आदि पुरुष देखी? मैंने देखी। मैंने क्यों ही देखी?जटायु वाला सीन और सीताहरण सीन देखने में ठीक लगे। इसके अलावा हीरण के पीछे भागने वाला सीन ठीक बनते बनते रह गया। इसके अलावा एक भी जगह फिल्म सुकून नहीं दे पाती है।फिल्म पर आरोप लगाया जा रहा है कि राम ने रावण को मारा कैसे? राम को रावण की नाभी में तीर मारने के विषय में विभीषण द्वारा सूचना देने का संदर्भ नहीं है। दरअसल यहां वरदान ही बदल दिया गया है। अपने वरदान में रावण पंञ्च महाभूत ( पृथ्वी, अग्नि, वायु आकाश, जल) में से केवल चार के द्वारा मारे जाने से इम्युनिटी प्राप्त करता है, अग्नि से नहीं। इसलिए फिल्म के बात में रावण नाभी में तीर लगने की वजह से नहीं अग्नि में जलने की वजह से मरता है (भले ही राम तीर नाभी में ही मारते हैं)। बहुत गहरी राइटिंग है ब्रो। इतनी गहरी कि कोई समझा ही नहीं पाएगा। डायरेक्टर ने समझाने की जहमत भी नहीं उठाई जबकि फिल्म तथाकथित रूप से बच्चों और नई पीढ़ी के लिए है।अगर नई पीढ़ी और बच्चों के लिए बनानी थी तो फिर उनको पहली बार में पारंपरिक वर्जन सुनाओगे या फिर अपनी नई व्याख्या? जो पहले से कहानी जनता है उसको नए तरीके से सुनाना अच्छी बात है एक नया दृष्टिकोण मिलता है लेकिन इस इतिहास/ पुराण/ मिथक से पहला परिचय उसी रूप में होना चहाइये जैसा वह पारंपरिक रूप में है। उसके बाद तात्कालिक संदर्भों और दृष्टियों को टटोलने का प्रयास समय समय पर होता रहा है। TV पर भी अलग अलग रूप में तीन से अधिक रूप में रामायण आ चुकी है।एक नए संदर्भ टटोलने का प्रयास अमीश त्रिपाठी द्वारा भी अपनी पुस्तक शृंखला में किया गया है और यह श्रृंखला स्वयं को “कथा साहित्य” के रूप में सत्यापित करती है। संभवतः आदिपुरुष ने वहां से बड़ी प्रेरणा ली हेयर इतनी सारी चीजों को बदला है (आदिपुरुष का दावा फिर भी यही है कि वह रामायण को यथारूप रख रहे हैं)। अमीश ने राम को मानवीय चरित्र के रूप में लिया है इसलिए कई दैवीय घटनाओं को हटाया है और उसके लिए अनेक कथानक बदले हैं लेकिन ओम राउत के पास ऐसी भी कोई वजह नहीं थी कथानक से छेड़छाड़ करने की। बल्कि ओम के पास एक अतिरिक्त अवसर था क्योंकि एक एनिमेशन फिल्म में फीचर फिल्म की अपेक्षा अपनी रचनात्मकता और कला को अतिरिक्त आयाम दिए जा सकते हैं।ओम राउत ने पारम्परिक कथानक से छेड़छाड़ करके कई समस्या उत्पन्न की हैं। जैसे कि वह राम को सीता हरण होते हुए दिखाते हैं लेकिन राम कुछ करते ही नहीं हैं जबकि वह दिव्यास्त्र धारण करते हैं। दूसरा वह आइकोनिक “हे खग मृग के मधुकर श्रेणी, तुम देखी सीता मगनयनी” का दृश्य गायब हो जाता है। ओम राउत लगातार भटके हुए हैं। ओम राउत समझ नहीं पाते कि वह अपने चरित्रों को मानव दिखाना चाहते हैं या दैवीय, वह नहीं समझ पाते कि विभिन्न चरित्रों के आपसी रिश्ते क्या हैं और कौन सी घटनायें भारतीय जनमानस के लिए वर्जित हैं। वह सीता जी व हनुमान जी के संबंध को लेकर दिग्भ्रमित हैं। हनुमान सीता जी के लिए जानकी, जानकी माता और माता तीनों संबोधन करते हैं। इसके अलावा ‘बहन को हाथ लगाएगा” वाला संवाद तो सब तक पहुंच ही चुका होगा।शास्त्रों में तो मेरी जानकारी के अनुसार हनुमान द्वारा नाम लेकर या बहन बोलने का जिक्र नहीं है लेकिन हां, अमीश त्रिपाठी की पुस्तक शृंखला में सीता – हनुमान का भाई बहन का रिश्ता अवश्य दिखाया गया है। कुल मिलाकर कथावस्तु तो बड़े स्तर पर बदली ही गई है कथानक में भी कई समस्या हैं। जैसे हनुमान जी को पिटते हुए कौन देख सकता है भला जो स्वयं बल और शक्ति के प्रतीक हैं? और मुझे देखना था “अंगद का पैर” लेकिन वो आया ही नहीं। मूड खराबा हो गया फिर तो बिल्कुल। सब कुछ बस निपटा सा दिया गया है लेकिन विभीषण की पत्नी को जरूर स्क्रीन दी गई है कपड़े बदलने के लिए।फिल्म में चरित्रों की बात की जाए तो कोई भी चरित्र विकसित नहीं होता हुआ दिखता, बल्कि लक्ष्मण, कुम्भकरण का तो चरित्र ही नहीं दिखता। कोई प्रभावशाली चरित्र नहीं है। राम में न औदात्य है न तेज न सौम्यता है ना शौर्य। बहुत ही मशीनी और एकवर्णी राम का यह चरित्र किसी भी तरह देखने लायक नहीं।संवाद तो सोशल मीडिया पर जलवा दिखा ही चुके हैं। लगता है जैसे बाल्मिकी रामायण, आध्यात्म रामायण, कृतिवास रामायण, तमिल रामायण की कड़ी में ओम राउत की “छपरी रामायण” अपना ऐतिहासिक हस्ताक्षर छोड़ेगी।ट्रेलर देखकर लग गया था कि कास्टिंग अच्छी नहीं हैं और vfx खराब होंगे। लेकिन महाकाव्य के प्रति सम्मान रखते हुए फिल्म एक्शन ड्रामा एडवेंचर या रोमेंटिक माइथोलाजिकल एक्शन ड्रामा बना लिया जायेगा तो देखने लायक फिल्म बन जायेगी।लेकिन फिल्म देखकर बस ये निष्कर्ष निकलता है कि फिल्म किसी भी विभाग में खराब ही है। Vfx की खराबी के लिए जम तैयार थे लेकिन बरबादी के पूरे पैकेज के लिए नहीं। संभावित डायलाग सुधार के बाद भी फिल्म पैथेटिक की श्रेणी में ही रहेगी। “एक फिल्म कैसी नहीं बननी चाहिए” का सटीक उदाहरण है यह फिल्म। “आदिपुरूष” देख कर जीवित बचने और गालियां चबा जाने लिए शुभकामनाएं।राम के चरित्र को बदले बिना, राम को मानवीय रूप में प्रस्तुत करने का कार्य नरेंद्र कोहली जी जैसे हिंदी के साहित्यकार कर चुके हैं। साहित्यरूषी से नरेंद्र कोहली जी के सभी कार्यों को प्राप्त किया जा सकता है। अगर आप भी आदिपुरुष से व्यथित हैं तो नरेंद्र कोहली जी को पढ़कर आप शांति पा सकते हैं।धन्यवाद
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