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दीप्ति मित्तल का कहानी संग्रह “खुले रखना दरवाजे” पढ़ा। पुस्तक में कई विषयों को छूने का प्रयास लेखिका ने किया है।पुस्तक में विवाह की समस्या को दर्शाया गया है, पारिवारिक मूल्यों को छूने का प्रयास किया है, शिक्षा व्यवस्था पर व्यंग्य का प्रयास है, स्वतंत्र कार्यकारी महिला के जीवन पर प्रकाश है तो साम्प्रदायिक व जातीय वैमनस्य पर भी कुछ दृष्टि लेखिका की गयी है। यौन हिंसा के संभावित वातावरण में मानसिक असुरक्षा व तनाव को भी लेखिका ने सटीकता से उकारने का प्रयास किया है। परिवार के रूप में अधिकांश जगह एकल परिवार दिखाया गया है। जो कुछ स्थानों पर संयुक्त परिवार है तो उसको कोई विशेष दर्जा देने की प्रवृत्ति नहीं दिखायी देती है। बल्कि एक कहानी में तो संयुक्त परिवार एवं उसके सम्मिलित रूप से निर्णय लेने की प्रवृत्ति को समस्या के रूप में भी देखा है। कुछ कहानी में एकल परिवार की उपस्थिति ने कामवाली बाई की उपस्थिति को भी सुनिश्चित किया है। कामवाली से संबन्धों को कुछ कहानियाँ में स्थान मिला है।
मानवीय संम्बन्ध कहानियों का मुख्य विषय है किंतु यहाँ संबंधों में ‘उपयोगितावाद’ हावी है। लेखिका ने प्रत्येक रिश्ते को उपयोगितावाद दृष्टिकोण से देखा है। इसलिए खून के रिश्तों का महत्व भी तब ही तक है जब तक वे उपयोगी हैं। शुद्ध मानवीय भाव आवेश के कारण किसी रिश्ते का महत्व निर्धारण कम ही है। लेखिका की यह दृष्टि कहानियों के कथानक को भी प्रभावित करती दिखती है और यह कई जगह अनावश्यक लेखकीय हस्तक्षेप से प्रभावित है।
पुस्तक में कहानियों की विषयवस्तु में अधिक विविधता नहीं है इसलिए लेखिका के जीवन दर्शन को समझने का प्रयास इस आधार पर किया जा सकता है। पुस्तक में 7- 8 कहानियां बुढ़ापे के पीढ़ी संघर्ष को सीधे सीधे संबोधित करती हैं। बुढ़ापे की आर्थिक, मानसिक, सामाजिक के साथ स्वास्थ्य सुरक्षा को पुस्तक लिखती है लेकिन समाधान पक्ष में वह अत्यधिक आदर्शवादी हो गई हैं। व्यापक यथार्थ का सामने करने के स्थान पर लेखिका ने एक ऐसे आदर्श को प्रस्तुत किया है जो अनेक स्थान पर सत्य से दूर तो है ही साथ में अव्यावहारिक भी है। दूसरी ओर लेखिका ने अधिकतर जगह बूढ़ों को ही पीढ़ी संघर्ष में परिवर्तित होते हुए तथा विचारों को आधुनिक होते हुए दिखाया है। मसलन लेखिका ने अकेलेपन से लड़ने के लिए एक बूढ़े दंपत्ति को पहाड़ों की सैर पर भेज दिया है, एक परित्यक्त बुढ़िया को एक परिवार अपने घर में रख लेता है क्योंकि वह उस घर की पुरानी मालकिन थी, एक किरायेदार के लिए एक बेटा अपनी बुढ़िया मां से लड़ जाता है। ऐसे ही कई और भी कहानियों के कथानक में दिखता है। कुल मिलाकर आधुनिक यथार्थ वाली कथावस्तु को लेखिका ने कथानक के स्तर पर कमजोर रूप से प्रस्तुत किया है ऐसा मेरा मानना है। पुस्तक की अधिकतर कहानियां केवल तब ही कनेक्ट करने में सक्षम हैं जबकि ऐसा कुछ व्यक्तिगत स्तर पर पाठक के साथ घटित हुआ हो।
खून के रिश्तों के उपर भी अन्य रिश्तों को वरियता देने या खून के रिश्तों के महत्व को समझाने के लिए उनकी उपयोगिता समझाना जरूरी था। लेखिका ने सरल मार्ग निकाला है कोई दुर्घटना या अचानक बिमारी में। कई कहानियों में लगभग यही पैटर्न दिखता है। कथानक मैं परिस्थितियों के स्थान पर केवल संवाद द्वारा हृदय परिवर्तन को दिखाये जाने से कई कहानियाँ काफी कमजोर हो गयी हैं।
रिश्तों में स्पेस व रिश्तों में समर्पण की डिबेट को भी एक कहानी में बताया गया है और वह कहानी काफी सशक्त दिखती है क्योंकि उनमें मन के अन्तर्द्वन्द की उपस्थिति दिखती है। स्त्रियों के संपत्ति के अधिकार को लेकर लेखिका की दृष्टि भी आश्चर्यचकित करती है। वह लगभग इस अधिकार के विरोधी पक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं और नैतिक रूप से पिता की संपत्ति में विवाहित पुत्री के अधिकार को गलत मानती हैं(कम से कम कहानी में ऐसा लगा) । किसी ओर कहानी में शायद ऐसा भाव न भी उत्पन्न होता।
चरित्र चित्रण पर बात की जाए तो सभी चरित्र एकविमीय ही दिखते हैं। या तो चरित्र अच्छे हैं या खराब हैं, जिनका बाद में हृदय परिवर्तन होता है। कुछ कहानियाँ जो स्थिति प्रधान हैं, अच्छा प्रभाव उत्पन्न करती हैं। उनमें चरित्रों में एक वर्णी प्रभाव तो है किंतु लेखकीय हस्तक्षेप से अनावश्यक हृदयपरिवर्तन नहीं हुआ है जैसे ‘पिता’, ‘छोटी छोटी खुशियां’, ‘मोस्ट वांटेड अन वांटेड’ कहानी में व्यक्तिगत समस्या का समाधान होता है किंतु व्यापक समस्या यथावत बनी रहती है।
भाषा के स्तर पर लेखिका का प्रयास सराहनीय है। वह प्रसंग व चरित्र ‘अनुरूप भाषा का प्रयोग करती हैं। भाषा में व्यंगात्मक व प्रतीकात्मक प्रयोग भी किया गया है किंतु यह सीमित है। अधिकांशतः सपाट सरल भाषा का प्रयोग है जो अत्यधिक बोधगम्य है। शब्दावली के स्तर पर लेखिका को किसी स्रोत से परहेज नहीं है। प्रचलित हिन्दी का ही प्रयोग उनके द्वारा किया गया है।
अधिकांश कहानियाँ मध्य वर्गीय नगरीय परिवेश में स्थान पाती हैं। वहाँ का वातावरण कई हद तक बनता हुआ दिखाई देता है। यहाँ भी लेखिका अपना कार्य सफलतापूर्वक करती हैं।
प्रभाव की दृष्टि से कुछ कहानियाँ ही मुझे सोचने पर मजबूर कर पाई हैं जबकि यह एक सोशल कमेंट्री है। कुछ कहानी तार जोड़ने में सक्षम रहीं लेकिन कई कहानियाँ औसत हैं। कुल मिलाकर पुस्तक एक औसत साहित्यिक कृति के निकट ही पहुंच पाती है। इसका संभावित कारण लेखिका का व्यवसायिक लेखक होना रहा है क्योंकि वह व्यवसायिक रूप से कंटेंट राइटिंग की अभ्यस्त रही हैं। लेखिका कई प्लेटफार्म के लिए लिखती रही हैं और शायद एम शुद्ध कलात्मक पक्षों पर अपनी पुस्तक की सफलता ना तौलती हों।
लेखिका विज्ञान की कई अकादमिक पुस्तकें लिख चुकी हैं। वैज्ञानिक लेखन आधारित साहित्यिक पुस्तकों की याचना सहित ‘खुले रखना दरवाजे’ के लिए लेखिका को शुभकामनाएँ।
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