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इस उपन्यास में निराला ने अवध क्षेत्र के किसानों और जनसाधारण के अभावग्रस्त और दयनीय जीवन का चित्रण किया है। पृष्ठभूमि में स्वाधीनता आंदोलन का वह चरण है जब पहले विश्वयुद्ध के बाद गांधीजी ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली थी। यही समय था जब शिक्षित और संपन्न समाज के अनेक लोग आंदोलन…
इस उपन्यास में निराला ने अवध क्षेत्र के किसानों और जनसाधारण के अभावग्रस्त और दयनीय जीवन का चित्रण किया है। पृष्ठभूमि में स्वाधीनता आंदोलन का वह चरण है जब पहले विश्वयुद्ध के बाद गांधीजी ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली थी। यही समय था जब शिक्षित और संपन्न समाज के अनेक लोग आंदोलन में कूदे जिनमें वकील-बैरिस्टर और पूँजीपति तबके के नेता मुख्य रूप से शामिल थे। इन लोगों की प्रतिबद्धता स्वतंत्रता आंदोलन से बेशक गहरी रही, लेकिन किसानों और मजदूरों की तकलीफों से इनका ज्यादा वास्ता नहीं था। कहा जा सकता है कि इनका मुख्य उद्देश्य अपने लिए आजादी हासिल करना था, इसलिए नेतृत्व का एक हिस्सा किसानों-मजदूरों के आंदोलन को उभरने देने के पक्ष में नहीं था। निराला ने इस उपन्यास में इस निहित वर्गीय स्वार्थ का स्पष्ट उल्लेख किया है। जमींदारों के विरुद्ध किसानों के विद्रोह का जैसा अंकन यहाँ निराला ने किया है, वह अपनी यथार्थवादिता के नाते दुर्लभ है। इस उपन्यास में उनकी भाषा भी पहले उपन्यास ‘अप्सरा’ से ज्यादा वयस्क है।
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