सत्ता

कबीर ने कहा था,“तू कहता कागद की लेखी,मैं कहता आँखिन देखी,तू रखता उलझावन हारी,मैं रख्यो अरुराई रे,तेरा मेरा मनुवा कैसे,एक होई रे “ इसी प्रकार संत परंपरा के एक अन्य कवि ने कहाँ है कि, ” संतन को कहाँ सीकरी सौं काम,आवत जात पन्हैया टूटी,बिसर गयो हरिनाम” ये दोनों ही कथन सत्ता की मुख़ालफ़त करते … Continue reading सत्ता