वार ऑफ लंका :- अमीश त्रिपाठी (उपन्यास समीक्षा)

दीपावली सबकी बढ़िया रही होगी। राम जी के वापस अयोध्या आगमन का त्यौहार था तो सोचा कुछ रिलेटेड पढ़ा जाए। अमीश की श्री रामचंद्र सीरीज की अंतिम पुस्तक वार ऑफ लंका पढ़ी।500 पेज की पुस्तक थी जिसको आराम से 350 में निपटाया जा सकता था। बाकी इसके अलाव पुस्तक थीक ही है। काफी सारा अपना आइडियोलॉजिकल और फिलोसॉफिकल पुश देने की वजह से पुस्तक लंबी हो गई है। दो दो पेज तक पोहा और बिरयानी की रेसिपी बताई गई है। अपनी शिवा सीरीज की प्रमोशन भी कई जगह है और अंत में संकेत किया गया है कि अगली पुस्तक श्रृंखला वैदिक काल के दशराज युद्ध के विषय में होगी।पुस्तक में युद्ध का व्यापक स्तर का वर्णन मुझे पसंद है और वो पहने में माजा आता है। लेकिन जब द्वंद्व युद्ध को वह दर्शाते हैं तो एक दो पेज तक ही सही लगता है, उसके बाद जल्दी करो वाली फील आती है।पुस्तक एक माइथोलॉजिकल फिक्शन है अर्थात पौराणिक कथाओं के चरित्रों को तथा मुख्य घटनाओं को समान रखते हुए अन्य कथानक में कल्पना का प्रयोग। पुस्तक में शबरीमाला मंदिर की मुख्य पुजारी के रूप में शबरी को दिखाया गया है, इस प्रदर्शन के निहितार्थ को समझ सकते हैं जो मंदिर के विषय में फैले कॉन्ट्रोवर्सी को जानते हैं।इसी तरह रावण के ऊपर लगे सभी प्रकार के पापों को भी पुस्तक ने दो दिया है। राम को असाधारण राजा के रूप में दिखाया है, लेकिन उन की ईश्वर वाली छवि अमीश ने समाप्त करने की कोशिश की है। बल्कि यू की कहानी में सीता एक अधिक केंद्रीय पात्र के रूप में सामने आती हैं। ऐसे ही वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से अत्यधिक विकसित समझ के रूप में भारत को दिखाया गया है, यह तक कि पुष्पक विमान को भी दिखाया है। सिनौली, लोथल और सिगरिया जैसी पुरातात्विक जगहों को कथानक में अच्छे से प्रयोग किया है।बहुत सारी phrase और adjectives का अत्यधिक प्रयोग है। पर संवादों में मजा आता है। बस मुझे भाई को दादा बोलना नहीं जमा😂😂। अमीश खुद बांग्ला भाषी हैं तो उन्होंने उसके हिसाब से किया होगा। समझा जा सकता है। अमीश के द्वारा लिखी पुस्तकों में अभी भी मेरी व्यक्तिगत रूप से प्रिया पुस्तक ‘सीता – the warrior of mithila ‘ ही है।ज्यादा नहीं लिखना क्योंकि पहला तो यह पुस्तक अंग्रेजी में पढ़ी है और दूसरा रिव्यू के लिए कोई पेमेंट नहीं मिला है।अमीश रॉकस्टार हैं और पुस्तक already बेस्टसेलर है। जो लोग पौराणिक कल्पना साहित्य के शौकीन हैं और भारतीय प्राचीन संस्कृति का गौरव गान सुनना चाहते हैं, वे पुस्तक अवश्य पढ़ सकते हैं। कहानी कहने के स्टाइल में तो कुछ नयापन नहीं दिखता है बस कथानक के नएपन के लिए पढ़ी जा सकती है।

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